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गीतोक्त विधि से ईश्वर का भजन प्राणीमात्र का स्वधर्म है

  गीतोक्त विधि से ईश्वर का भजन प्राणीमात्र का स्वधर्म है - गीता में वर्णित स्वधर्म विषय पर आयोजित गोष्ठी में विद्वतजनों ने दिया विचार  - राब...

 गीतोक्त विधि से ईश्वर का भजन प्राणीमात्र का स्वधर्म है

- गीता में वर्णित स्वधर्म विषय पर आयोजित गोष्ठी में विद्वतजनों ने दिया विचार 

- राबर्ट्सगंज नगर के जयप्रभा मंडपम में हुआ भव्य आयोजन

- गीता जयंती समारोह समिति सोनभद्र ने किया था यह आयोजन

रिपोर्ट किरन साहनी




सोनभद्र।  राबर्ट्सगंज नगर स्थित जयप्रभा मंडपम में शनिवार को गीता जयंती समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें गीता में वर्णित स्वधर्म विषय पर आयोजित गोष्ठी में विद्वतजनों ने अपना विचार व्यक्त किया। इसके अलावा पांच विभूतियों को गीता प्रचार प्रसार सम्मान से सम्मानित किया गया। सबसे पहले आयोजक मंडल की ओर से स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज के चित्र पर माल्यार्पण कर एवं दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इसके अलावा सोनभद्र मुख्यालय पर गीता जयंती समारोह के आयोजन की शुरुआत करने वाले गीता प्रेमी स्वर्गीय प्रेमनाथ चौबे के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर संयोजक डाक्टर  कुसुमाकर ने  दिव्यांगजनों को कंबल भी वितरित किया ।

  गोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉक्टर वी.सिंह ने कहा कि गीता प्राणीमात्र का धर्मशास्त्र है। गीता के अनुसार धर्म में सभी को प्रवेश का अधिकार है। यह भेदभाव से परे है। गीता में नियत कर्म अर्थात साधन पथ को साधक के स्वभाव में उपलब्ध क्षमता के अनुसार चार भागों में बांटा गया है।यह वर्णक्रम क्रमशः उन्नति के सोपान हैं। इसीलिए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि स्वभाव में पायी जाने वाली क्षमता के अनुसार कर्म में लगना स्वधर्म है। भगवत् पथ में अपने से उन्नत अवस्था वालों की नकल उचित नहीं है। विषय प्रवर्तन करते हुए साहित्यकार जगदीश पंथी ने कहा कि स्वधर्म का आचरण शुद्ध साधनापरक प्रक्रिया है और निश्चित परिणामकारी है।  उन्होंने कहा कि गीता के अनुसार एक परमात्मा के प्रति समर्पित व्यक्ति ही धार्मिक है तथा एक परमात्मा में श्रद्धा स्थिर करना ही धर्म है।

वरिष्ठ साहित्यकार अजय शेखर ने कहा कि जीवन को सुखमय बनाने के लिए जो आचार संहिता है वह धर्म है। धर्म को हम मजहब नहीं मान सकते। यह धारण किया जाता है। राजनीतिक स्वार्थ के चलते धार्मिक विकृतियाँ फैलीं। 

शिक्षक ओमप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि ईश्वर के पथ पर चलना मनुष्य का स्वधर्म है। जूना अखाड़े के स्वामी ध्यानानंद गिरि ने कहा कि गीता परमहंस संहिता है। यह योगशास्त्र है। इसके अनुकरण से मनुष्य यथेष्ट प्राप्त कर सकता है।सहायक अभियंता आर पी दूबे ने कहा कि राम के चरणों में जिसका मन अनुरक्त है वही धर्मज्ञ है।

 इसी प्रकार  डॉक्टर विमलेश त्रिपाठी, बालेश्वर यादव आदि विद्वानों ने अपना विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम का सफल संचालन भोलानाथ मिश्र ने किया। आभार अरुण चौबे ने व्यक्त किया। इस मौके पर गणेश श्रीवास्तव,विनोद कुमार श्रीवास्तव,राजेश चौबे उमाकांत मिश्रा, पियुष त्रिपाठी, आशुतोष पांडेय, सचिन तिवारी, राजू तिवारी, गणेश पाठक,  रमाशंकर चौबे, अमरनाथ पांडेय,राम जनम, मदन चौबे, दीपक कुमार केसरवानी आदि मौजूद रहे।

इनसेट-

पांच विभूतियों को किया गया सम्मानित

सोनभद्र। गीता जयंती के अवसर पर शनिवार को गीता के अविनाशी योग के प्रचार-प्रसार में लगे पाँच महानुभावों को गीता जयंती समारोह समिति द्वारा सम्मानित किया गया।  वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद कुमार श्रीवास्तव, सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक बालेश्वर यादव, नरेन्द्र कुमार पांडेय, सुदामा गुप्ता एवं कृपा शंकर दूबे को समिति द्वारा शाल ओढ़ाकर तथा सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया।

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