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सरसों के फूल और अटल जी का शर्माना

 ( जन्मदिन 25 दिसंबर पर विशेष) सरसों के फूल और अटल जी का शर्माना  ****************************** राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दीक्षित कार्यकर्...

 (जन्मदिन 25 दिसंबर पर विशेष)

सरसों के फूल और अटल जी का शर्माना 

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दीक्षित कार्यकर्ता, भाजपा के संस्थापक और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई को गये चार साल हों गए, लेकिन मुझे आज भी लगता है कि वे कहीं नहीं गये, हमारे आसपास ही हैं। अटल जी के हंसी ठहाके आज भी कानों में गूंज रहे हैं।

अटल जी के 98 वे जन्मदिन पर मेरे मन में अनेक ऐसी स्मृतियां हैं जो अब तक क्वारी हैं।

अटल जी देश के प्रधानमंत्री थे लेकिन हम ग्वालियर वालों के लिए वे हमारे परिवार के मुखिया की तरह थे। अटल जी ने ग्वालियर के किसी भी रहवासी के ऊपर अपने प्रभामंडल को प्रकट नहीं किया।वे सबके लिए 'हमारे अटल जी' थे। अटल जी का यही अपनत्व ग्वालियर वालों को संपन्न बनाता है। मुझे भी।

अटल जी मुझसे 34 साल बड़े थे, लेकिन उनके स्वभाव में जितनी गंभीरता थी उतनी ही शरारत भी थी। एक पत्रकार और तुकबंद कवि होने के नाते अटल जी से मेरी नजदीकी कुछ अलग तरह की थी। मुझे उनकी उपस्थिति में अनेक कवि गोष्ठियों में हिस्सा लिया था। मै मौके -बेमौके उनसे हंसी -मजाक भी  कर लेता था।अटल जी का मूड भांपकर बात करना जिसे आता हो उसे कभी निराश नहीं होना पड़ा, मुझे भी।

ग्वालियर के पत्रकारों में मै और मेरे गुरु स्वर्गीय काशीनाथ चतुर्वेदी दो ऐसे पत्रकार थे जो अटल जी की ही तरह धोती - कुर्ता पहनते थे। हमारी पोशाक भी हमें अटल जी के नजदीक ले जाती थी।हम दोनों को अटल जी से बात करने में सहूलियत होती थी। मेरे आग्रह पर वे दो बार प्रेस क्लब भी आए थे।

सर्दियों के दिन थे,तब वे प्रधानमंत्री नहीं बने थे, लेकिन हम सबके लिए वे प्रधानमंत्री से कम नहीं थे। ग्वालियर में अटल जी के प्रिय तत्कालीन सिंचाई मंत्री शीतला सहाय ने अटल जी को ग्वालियर के नजदीक हिम्मत गढ़ सिंचाई परियोजना के लोकार्पण हेतु आमंत्रित किया था। नया गांव के छोटे से डाक बंगले में हम पत्रकारों के दल ने अटल जी के साथ नाश्ता किया। अटल जी बोले यहां सिर्फ नाश्ता होगा, बातचीत हिम्मत गढ़ में करेंगे।

अटल जी को डाक बंगले पर विश्राम करते छोड़ हम सब पत्रकार हिम्मत गढ़ पहुंच गए। अटल जी के पहुंचने पर उनकी अगवानी करने की बारी आई तो मैंने इधर उधर देखा, कहीं कोई फूलमाला न थी।तभी सरसों के खेतों में बिछी फूलों की चादर देख मुझे न जाने क्या सूझा कि मैंने सरसों के पीले फूलों का गुलदस्ता बनाकर अटल जी की ओर बढ़ा दिया।

अटल जी पीले फूलों का गुलदस्ता देखकर मुस्कुरा दिए,बोले जले पर नमक मत छिड़को अचल जी, सरसों के फूलों पर मरने के दिन तो गये।अब हम बूढ़े हो गए हैं। अटल जी ने शीतला सहाय की ओर देखा और फिर शर्म से लाल होते हुए ठठाकर हंस पड़े ‌सब जानते हैं कि ग्वालियर में अटल जी का एक प्रेम प्रसंग भी चर्चित था।

ग्वालियर व्यापार मेला घूमना अटल जी का शौक था।जब कभी उनको मौका मिलता, वे अपने दलबल के साथ मेला घूमने निकल पड़ते। कोई भी उनसे हाथ मिला सकता था,,पैर छू सकता था।एक मर्तबा मैंने मेला घूमने आए अटल जी की तरफ मूंगफली का पैकेट बढ़ा दिया।वे हाथ हिलाकर बोले -" आज का कोटा पूरा हो गया ।

अटल जी को तिघरा जलाशय बहुत पसंद था।वे सपरिवार पिकनिक मनाने अक्सर तिघरा जलाशय जाते रहते थे।जीभ के कच्चे अटल जी कान के कच्चे नहीं थे। ग्वालियर से 1984-85  का लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनका मन ग्वालियर से हमेशा के लिए खिन्न जरूर हो गया था।वे कांग्रेस के माधवराव सिंधिया से चुनाव हार गए थे।इस चुनाव में राजमाता विजया राजे सिंधिया ने भी प्रत्यक्ष रूप से अटल जी का प्रचार नहीं किया था।

@ राकेश अचल


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