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राष्ट्र राज्य और समाज चिंतन के संदर्भ में एक विनम्र निवेदन

  राष्ट्र राज्य और समाज चिंतन  के संदर्भ में एक विनम्र निवेदन     राघवेंद्र श्रीवास्तव ईश्वर ने जीवन दिया है तो उसका उद्देश्य भी होना चाहिए।...

 राष्ट्र राज्य और समाज चिंतन  के संदर्भ में एक विनम्र निवेदन

    राघवेंद्र श्रीवास्तव

ईश्वर ने जीवन दिया है तो उसका उद्देश्य भी होना चाहिए।           विचारों और संस्कारों के प्रभाव से बचपन से ही राष्ट्रप्रेम की ऐसी  अलग जगी कि 16 वर्ष की आयु में ( सन 1982 में) , पंजाब की तत्कालीन स्थिति को देखकर "जयहिंद से-खालिस्तान तक "एक लेख लिखा । जो दैनिक स्वदेश समाचार पत्र में छपा और काफी चर्चित भी रहा ।


 जानकारी और ज्ञान के विस्तार के साथ चिंतन की धार और भी पेनी होती गई और एक समय आया जब वर्ष 1987 एवं 1988  में कॉलेज के मंच से लेकर जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के सभागार में , अपने विचार रखते हुए ,"सामाजिक चेतना के प्रवाह का प्रयास कर " समाज से दुख ,दर्द ,अन्याय और अराजकता मिटाने का ताना-बाना बुनते हुए दर्जनों पुरस्कार जीते ।

        किंतु उसके बाद जब वास्तविक जीवन मे , राष्ट्रवाद और समाज हित के मेरे मजबूत विचारों का जैसे ही व्यवहारिक जीवन की सच्चाई से सामना हुआ, तो मेरे सुंदर- संसार का सपना विखरना प्रारंभ हो गया ।जैसे-जैसे समय गुजरता रहा अन्याय ,अत्याचार और भ्रष्टाचार के नित नए अनुभवों ने जीवन की दशा ही बदल दी ।सन 1990 से  प्रारंभ यह कल्पना और यथार्थ का संघर्ष मेरे जीवन का हिस्सा बन चुका है ।1990 तक अपने विचारों से मैंने जो पाया था वह व्यवहारिक जीवन में मेरी अवनति का कारण बन गया ।

          जो धारा के साथ चलते हैं वो  सहजता से आगे बढ़ते हैं। मैंने इस प्रवाह में बहना स्वीकार नहीं किया तो प्रचलित व्यवस्था की मजबूत लहरों ने एक किनारे धकेल  दिया ।

         आज जीवन के 5 दसक पूर्ण कर चुका हूं । इस उम्र में लोगों के पास वह सब कुछ होता है जो आम जीवन में होने की कामना की जाती है पर मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है । किंतु हां इन तीन दशकों के संघर्षों से जो मैंने महसूस किया है उसे मैं अपने साथ लेकर  संसार से चला जाऊं तो यह ,मेरा स्वयं के संघर्ष के साथ अन्याय होगा और उस भावना के साथ भी -जिसे लेकर मैंने अपनी जीवन की यात्रा प्रारंभ की थी ।

         इसलिए मैं राघवेंद्र श्रीवास्तव अपने जीवन के कटु अनुभव और अपने चिंतन  को नई पीढ़ी एवं प्रबुद्ध जनों के समक्ष रखना चाहता हूं । ताकि वह मेरे संघर्ष ,अनुभव और चिंतन की रोशनी में अपने नवीन विचारों ,नई परिकल्पना  और,नवीन प्रयासो से  समाज के लिए कुछ अच्छा कर सकें कुछ यादगार दे सकें ।

          यदि आपको लगता है कि मेरा यह  प्रयास सही दिशा में एक कदम है तो कृपया अपना समर्थन देकर प्रोत्साहित करें 

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