अभिषेक शर्मा नई दुनिया शिवपुरी /प्रेस स्वतंत्रता दिवस: ३ मई को इस नाम का भी दिवस होता है, लेकिन क्या वाकई में प्रेस स्वतंत्र है? सभी से सव...
अभिषेक शर्मा नई दुनिया शिवपुरी /प्रेस स्वतंत्रता दिवस: ३ मई को इस नाम का भी दिवस होता है, लेकिन क्या वाकई में प्रेस स्वतंत्र है? सभी से सवाल पूछने वाली प्रेस ही आज सबसे ज्यादा सवालों के कठघरे में है। इसे
आजाद कराने कोई क्रांतिकारी नहीं आएगा, इसके लिए खुद पत्रकारों को कुछ करना होगा। ऊपरी तौर पर लोगों को लगता है कि फलां संस्थान या मीडिया हाउस सरकार के लिए काम कर रहा है, किसी को वामपंथी बता दिया जाता है। लेकिन, सच यह है कि हर अच्छे संस्थान में अपनी पॉलिसीज होने के बाद भी रिपोर्टर को उसकी खबरें करने से रोका नहीं जाता, उस पर यह बंदिश नहीं डाली जाती है कि वो भाजपा या कांग्रेस नेता से कैसे सवाल पूछे तो स्वतंत्रता तो है। हां, कुछ मजबूरियां विज्ञापन की होती हैं क्योंकि कोई भी संस्थान बिना खर्च के नहीं चलता, लेकिन अच्छे संस्थान इसके बीच बैलेंस भली भांति बनाना जानते हैं और बना भी रहे हैं।
– यहां परेशानी वो पत्रकार हैं जो खुद किसी राजनीतिक पार्टी में बकायदा पद लेकर बैठे हैं और पत्रकार भी कहला रहे हैं। वो कैसे निष्पक्ष होंगे।
– दूसरी बड़ी परेशानी शौकिया पत्रकार हैं जिनका मूल काम कुछ और है और उस काम में वजन बढ़ाने के लिए पत्रकार बन जाते हैं। भला कोई शौकिया पत्रकार कैसे हो सकता है, क्या शौक में एक पब्लिक प्लेटफार्म पर कुछ भी लिखा और पाठकों को पढ़ाया जा सकता है? पत्रकारिता जैसा गंभीर काम "हॉबी" नहीं हो सकता।
– तीसरी परेशानी हैं सेकंड इनकम वाले पत्रकार। यह सही है कि इस पेशे में दूसरी प्राइवेट नौकरी जितनी आकर्षक सैलरी नहीं होती। ऐसे में कुछ "ईमानदार" पत्रकार सोचते हैं कि हम पत्रकार तो ईमानदार रहेंगे, लेकिन कोई और काम कर सेकंड इनकम बनाएंगे। इसके लिए ठेकेदारी या कोई और काम चुनते हैं। ऐसे में कहां अपने पेशे से ईमानदार रह पाएंगे? यदि खुद कोई दूसरा काम नहीं करते तो अपने परिवार के सदस्य को उतार देते हैं उसमें। पेशे से ईमानदारी तो तब भी परेशानी में पड़ जाती है।
– अंत में इन लोगों के बीच वे फंस जाते हैं जिनका रोजगार, आजीविका और उद्देश पत्रकारिता ही है। ऐसी ही है प्रेस की स्वतंत्रता।
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