किसी में दुर्गा, तो किसी में श्याम हर बच्चें में, बसते हैं भगवान डॉ प्रीति राजपुरोहित सच ही है, बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं। चिकित्सक ए...
किसी में दुर्गा, तो किसी में श्याम
हर बच्चें में, बसते हैं भगवान
डॉ प्रीति राजपुरोहित
सच ही है, बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं। चिकित्सक एक जरिया मात्र है, नन्हे फरिश्तों को अपने परिवार से मिलाने का।
ठीक उस समय से जब चिकित्सक, परिवार को शिशु सौंपता है, शिशु की जरूरतों को समझना परिवार की ज़िम्मेदारी बन जाती है।
नवजात शिशु के लिए सब कुछ नया होता है। शिशु विचलित हो रहा होता है, रो रहा होता है। अक्सर शिशु के प्रियजन, उसकी जरूरतों को लेकर दुविधा में आ जाते हैं।
नवजात शिशु की जरूरतें समझना बेहद जरुरी है, यह होती बेहद मामूली सी हैं किन्तु ये मामूली सी जरूरतें उनके विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती हैं।
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भरपूर स्नेह : स्नेह शिशु के शारीरिक एवं मानसिक विकास में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
स्नेह मस्तिष्क में अच्छे हॉर्मोन्स के उत्पादन में मदद करता है। इसलिए यह चिंता न करें कि आप बच्चे को अधिक प्यार देंगे तो वह बिगड़ जायेंगे, बल्कि उन्हें इस उम्र में इसकी अधिक आवश्यकता है।
संवादात्मक वातावरण : नवजात शिशु सोचने से ज्यादा देखना, सुनना और महसूस करना पसंद करते हैं।
शिशु की आँखों, कानों और त्वचा के लिए संवेदी अनुभव प्रदान करना, उनके मस्तिष्क को इन सबसे परिचित करवाता है एवं उन्हें विकसित करता है।
स्थापित दिनचर्या : बाहरी परिवेश या दिनचर्या में बदलाव उन्हें असहज महसूस करवाता है एवं विचलित करता है।
जब आपका बच्चा विचलित होता है और रोता है, तो उसे स्नेह दें एवं आरामदेह और सुरक्षित महसूस करवाएं।
याद रखें, आप ही उनकी संपूर्ण दुनिया हैं।
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