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महिलाओं को यदि आजादी देते हैं तो फिर होने वाले अनुभव और उनकी खुली विचारधाराओं के साथ भी उन्हें स्वीकार करें

  लड़कियां यदि ज्यादा पढ़ लिख जाती है , तो अपने पति को कम या छोटा समझने लगती है ऐसा कुछ नही एक मिथ्या है यह तो परस्पर प्रेम और अपना-अपना दृष...

 लड़कियां यदि ज्यादा पढ़ लिख जाती है ,

तो अपने पति को कम या छोटा समझने लगती है ऐसा कुछ नही एक मिथ्या है यह तो परस्पर प्रेम और अपना-अपना दृष्टिकोण है। आप किस रिश्ते में क्या अनुभव करते हैं।


ग्वालियर /पर हां बदलते इस दौर में हमारी मानसिकता जरूर बदल रही है बस हम इसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार नही कर पा रहे ।

यदि आप पढ़ी-लिखी और कदम से कदम मिलाकर चलने वाली बीवी चाहते हैं तो उससे पूर्ण घर की जिम्मेदारी संभालने की आप कैसे उपेक्षा रख सकते हैं । जब वह भी पुरुषों की भांति सारा काम करेगी तो फिर आदमियों की तरह ही व्यवहार करती है । उसे भी सब कुछ अपने मन मुताबिक चाहिए। यह क्यों नहीं सोचते उसे भी वही कठिनाइयां आती हैं जो पुरुषों को समाज में जीने में आती है उसे भी अपनापन प्रेम और दबाव रहित दांपत्य जीवन चाहिए। यदि वह अपना मन की करती है तो बुराई नही है हो सकता है घर परिवार का माहौल ठीक ना हो।

ठीक इसके विपरित जो जॉब नहीं करती क्या वह महिलाएं अपने मन की नहीं करती ??????????

करती हैं, प्रत्येक महत्वाकांक्षी महिला अपने परिवार को अपने हिसाब से डालने की पूर्ण कोशिश करती है। परंतु एक वास्तविकता यह भी है ,जॉब या व्यवसाय न करने वाली महिलाएं अपने पतियों  पर निर्भर रहती है और इसी डर के कारण ना चाहते हुए भी शादी के रिश्ते में बनी रहती है परंतु इसके विपरीत भी समाज में देखा गया है ऊंचे पद पर पदस्थ अधिकारी महिला भी छोटे सी सैलरी वाले पतियों के साथ बड़े आनंद के साथ रह लेती है यह सब " संस्कारों " का खेल है।

धीरे धीरे हम सब संस्कारों की बात करते हैं परंतु संस्कारों के ना प्राप्त होने की जड़ पर कोई बात नहीं की जाती। आज जो हो रहा है उसकी बात करते हैं, क्या एक संस्कारित लड़की कभी यह सोच सकती थी कि जिस ने पढ़ाया है उसके आभार व्यक्त करने की जगह मैं उसको ही छोड़ दूं नहीं यदि घर का माहौल बिगड़ा होता तो वह उसे सुधारने की कोशिश करती शादी छोड़ना इतना भी आसान नहीं हां यदि परंतु परस्पर प्रेम नहीं तो यह तुरंत ही हो सकता है। इसीलिए हम परिस्थिति का अकेले जिमादार नही मान सकते ।

ज्योति जैसी समाज में अनेक महिलाएं हैं बस उनके किस्से नहीं सुनाई दिए और अनेक पुरुष है जो किसी पराई स्त्री के प्रेम में अपनी विवाहिता को वृद्ध अवस्था में भी छोड़ देते हैं तो यह कोई नई बात नहीं है सब कुछ प्रेम पर निर्भर करता है।

 जहां तक पढ़ाने लिखाने की बात है तो मेरा यह मानना है की समाज में किसी एक के कुछ गलत कर देने से हम सारी स्त्री जात पर दोषारोपण नहीं कर सकते  समाज की हर स्त्री को एक ही दृष्टिकोण से  देखना गलत  है यही अभी हम बात करें तो स्त्री की अपनी सारी  उम्र प्रेम एक ही रिश्ते को समर्पित करने के बाद भी कई बार पुरुष आज भी अपनी पत्नियों को दूसरी औरतों के चक्कर में डिवोर्स दे देते हैं तो फिर इसे क्या कहेंगे????????

कलयुगी समाज बदल रहा है भावनाएं बदल रही है लोग सिर्फ अपने बारे में सोचने हैं वेशक खुदगर्ज है और यह प्रभावित समाज , एक दोहरी मानसिकता के साथ जीता है बस इसे स्वीकारता नहीं है।

जो ज्योति ने किया वह कोई और भी कर सकता था यह घर के माहौल पर निर्भर करता  है । मेरा यह मानना है किसी भी रिश्ते को बनाए रखने के लिए दोनों तरफ से प्रयास होने आवश्यक है। ज्योति ने जो अपने पति के साथ किया इसके लिए आप हर लड़की को कसूरवार या हर महिला का आकलन एक ही मानसिकता के साथ नहीं कर सकते। हो सकता है ज्योति का हस्बैंड उसे पढ़ाने लिखाने का तना देता हो दबदबा बनाकर रखना चाहता हो । महत्वकांक्षी होने के साथ-साथ बड़ी अफसर होने के कारण वह यह दबाव सहन ना कर पाए मैं यहां ज्योति की वकालत ना कर रही हूं क्योंकि पारिवारिक माहौल असलियत में क्या है वहां हम में से वास्तविक रूप से कोई नहीं जानता।

मेरा सभी से यह कहना है कि महिलाओं को यदि आजादी देते हैं तो फिर होने वाले अनुभव और उनकी खुली विचारधाराओं के साथ भी उन्हें स्वीकार करें सहर्ष ही हर्ष से उनके साथ रहे।

मेरी नजर से संबंध 

@आशी प्रतिभा दुबे ( स्वतंत्र लेखिका)

मध्य प्रदेश ग्वालियर

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