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जाको मरे तेई रोवे,गंगादास पौर में सोवे.

"जाको मरे तेई रोवे,गंगादास पौर में सोवे....!!" (प्रसंग- #चकरामपुर_सामूहिक #हत्याकांड..) वाह रे आभासी दुनिया के अति सक्रिय तंत्र,ज...

"जाको मरे तेई रोवे,गंगादास पौर में सोवे....!!"

(प्रसंग- #चकरामपुर_सामूहिक #हत्याकांड..)

वाह रे आभासी दुनिया के अति सक्रिय


तंत्र,जनप्रतिनिधिगण...! तुम तो तिल का ताड बना लेने में माहिर थे,आभाषी दुनिया की हर छोटी-बड़ी घटना,क्रिया,प्रतिक्रिया पर तुम्हारी पैनी नजर होती थी पर शिवपुरी के  ग्राम"चकरामपुर(नरवर)में हुए लोमहर्षक भयावह मौत के तांडव पर तो तुम्हारी नजर ही नही गयी...? सच,नजर जाती भी कैसे क्योंकि वहाँ कोई "हिन्दू-मुस्लिम,मंदिर-मस्जिद,सनातन-राष्ट्रवाद जैसा मुद्दा थोड़ी न था जो खुलकर इतिहास-भूगोल लेकर परोसने बैठ जाते,तीखी प्रतिक्रियाओं के ब्रह्मास्त्र दागने लगते..!

अरे शिवपुरी के ग्राम चकरामपुर(नरवर)में आखिर ऐसा हुआ ही क्या है..? मात्र आधा सैकड़ा से अधिक आरोपियों द्वारा गांव के एक मात्र क्षत्रिय परिवार को घेर कर एक महिला के पेट पर पैर रखकर लकड़ी की भांति कुल्हाड़ियों से इतना चीरा गया कि शरीर के कोमल भागो से आंतों के लोथड़े लकड़ी के परखच्चो की तरह बाहर आ गये...?? मात्र परिवार के एक सदस्य  (जो बहन के घर दोज का टीका कराने आया था) को गाड़ी के भीतर जिंदा जला दिया...?मात्र परिवार की महिलाओं,बच्चो की चीख पुकार के बीच अन्य सदस्यों पर  लाठी लुहाँगी,कुल्हाड़ियों व गोलियों से ऐसी वर्षा की कि चौतरफा खून के फब्बारे चल पड़े जिनमे 3 मर चुके है ओर शेष मरणासन्न है...!  

इस बीभत्स नरसंहार में आखिर हुआ ही क्या है ऐसा जिस पर तुम अपने आभाषी दुनिया(सोशल मीडिया)पर दिये जाने बाले कीमती समय मे से समय निकालकर महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया,संवेदनाएं दे पाते।

अरे,

तुम्हे तो खेल के मैदान की हर बड़ी-छोटी हलचल पर पैनी नजर जो रखनी थी..! खिलाड़ी की हर खूबी,गलती का सटीक विश्लेषण जो करना था...! खुद हरफनमौला की तरह अपने हुनरमंद होने की दलीलें भी पेश करना था...!

तुम्हे तो चुनावी दौर में प्रत्याशियों के जीत-हार का आंकलन,भविष्यवाणी,अपनी अग्रणी भूमिका,गणित,मैनेजमेंट,प्रत्याशी की भूल-चूक,जातीय समीकरण,जिले-प्रदेश की सरकार बनाने के मसले पर महत्वपूर्ण विचार ,केंद्र की राजनीति के शीर्षस्थो ने क्या पहना,क्या खाया,कहा उठे,कहा बैठे पर चर्चा भी तो करनी थी...।

अरे तुम्हे तो "सनातन,राष्ट्रवाद"खतरे में है जैसे महत्वपूर्ण कार्य के प्रचार-प्रसार में शब्दो की बमबारी के साथ अपनी भूमिका का निर्वहन भी तो करना था ,आदि आदि...!

जनप्रतिनिधिगण,तुम भी कैसे बोलते क्योंकि फरियादी हो या आरोपी,किसी न किसी पर तो तुम्हारी इस पार्टी,उस पार्टी की सील लगी हो होती है...!

ठीक भी तो है,राष्ट्र से जुड़े यह मुद्दे ही तो हमे आने वाली इक्कीसवीं सदी तक ले जायेंगे..!अरे "वर्ग-जातीय संघर्ष"के विकराल होते जा रहे स्वरूप व इनकी रोकथाम हेतु आवश्यक प्रयासों पर चर्चा करने में वक्त बर्बाद करने से भला क्या लाभ...! आना-जाना,जीना-मरना तो चलता ही रहता है फिर यहाँ कौन सा दलित कार्ड चला है जो हम हाय-तौबा मचाये।मारने वाले आरोपी कुशवाह (काछी)समाज के रहे ओर मरने वाले क्षत्रिय समाज के..(सनद रहे कि आरोपी सिर्फ आरोपी रहता है भले वो किसी भी समाज का हो।"समाज"शव्द की अभिव्यक्ति सिर्फ विषय की सार्थकता हेतु रखी गयी है)। फिर वैसे भी तो पीड़ित परिवार क्षत्रिय वर्ग से है सो इस समाज पर तो आप "दबंगियाई"के आरोप पीढ़ियों से लगाते आ रहे है।फिल्मी पटकथाओं की तरह इस समाज की भूमिका तो सिर्फ खलनायकों की ही तो रही है।इस समाज ने शायद सर्वहारा वर्ग की रक्षा,न्याय,अन्याय के विरुद्ध लड़े ही कहा है, आपका साथ दिया ही कहा है..?इस समाज ने देश,धर्म की रक्षा के लिये कुछ किया ही कहा है..?

वाह सर्वमान्य चिंतकों,वाह...!इस दर्दनाक घटना से तुम्हारा भला क्या वास्ता...?तुम भला क्यों चिंतित होने लगे।

कहावत है न कि"जाको मरे तेई रोवे,गंगादास पौर में सोवे..."।  सब कुछ त्यागकर सिर्फ इतिहासों में अंकित होने के बाद भी "अमन,शांति,भाईचारे,राष्ट्रहित,समाजहित"के लिये तोहमतें ,नरसंहार झेलने के बाद आज भी ये"दबंग"ही बने रहे ओर परिणाम यहाँ तक आ पहुचे कि अपने अस्तित्व पर ही सोचने को विवश है..!आश्चर्य तब भी होता है जब  समाज" मूकदर्शक बनकर दूर से तमाश बीन की भूमिका में तमाशा देखता है ..! अरे बुद्धजीवियों,विचारको,समाज के चिंतको,सोचो,इतना सब कुछ सहकर भी क्या इन्होंने अपना आपा खोया...? क्या कोई कोहराम मचाया..? अरे मत हमे सांत्वना दो,मत हमारे दुख-दर्द में सहभागिता करो,मत इस दर्दनाक घटना पर सहानुभूति रखो किन्तु इस मसले पर अपनी राय अवश्य रख दो कि ऐसी घटनाओं की पुनराबर्त्ति न हो..! यदि वाकई में आप जागरूक हो तो कुछ ऐसा जरूर करो कि यह सब थम जाये अन्यथा प्रतिशोध का लावा कही ज्वालामुखी सा न फट जाये..!याद रहे,विनाश किसी के लिये भी हितकर नही होता..!

खैर, चकरामपुर घटना की भयावहता ने वाकई झकझोर दिया..! दुखद,बेहद दुखद...!

ईश्वर "वर्ग संघर्ष"के इन अध्यायों को यही विराम दे । ईश्वर पीड़ित परिवार को दुख सहन करने की शक्ति दे और दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करे।ॐ शांति ॐ

(नोट-यह प्रतिक्रिया चकरामपुर की दर्दनाक घटना को लेकर है,इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति,वर्ग,समाज विशेष को इंगित करना नही है) 

बृजेश सिंह तोमर शिवपुरी

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