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पिछोर सीट पर भाजपा को इस बार क्यों लग रही है जीत आसान

  पिछोर सीट पर भाजपा को  क्यों लग रही है जीत आसान -जबकि 6 बार से भाजपा यहां से नहीं जीती शिवपुरी। शिवपुरी जिले की दो सीटें शिवपुरी और पिछोर ...

 पिछोर सीट पर भाजपा को  क्यों लग रही है जीत आसान


-जबकि 6 बार से भाजपा यहां से नहीं जीती



शिवपुरी। शिवपुरी जिले की दो सीटें शिवपुरी और पिछोर ऐसी है जिसमें शिवपुरी में भारतीय जनता पार्टी का मजबूत आधार है। यहां से भाजपा अपवाद स्वरूप एक उप चुनाव को छोड़ दें तो 1990 से लगातार जीतती आ रही है। इसके विपरीत पिछोर में कांग्रेस का मजबूत आधार है। कांग्रेस इस सीट पर 1993 से लगातार जीत रही है। 1990 से लगातार 6 चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह यहां से जीत का परचम फहरा रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी पिछोर में भाजपा को क्यों इस बार जीत आसान लग रही है। क्यों कहा जा रहा है कि कांग्रेस का यह गढ़ इस बार ध्वस्त हो जाएगा। इसके दो कारण बताए जा रहे हैं। एक तो पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार सिर्फ ढाई हजार मतों तक सिमट गई थी और दूसरा कारण यह है कि लगातार 6 बार से जीत रहे कांग्रेस प्रत्याशी केपी ङ्क्षसह इस बार पलायन कर चुके हैं। वह पिछोर छोड़कर शिवपुरी से चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन बात इतनी आसान नहीं है। मतदान के जो रुझान सामने आए हैं उससे पता चलता है कि पिछोर में जीत का परचम कोई भी दल फहरा सकता है।
जिले की पांच सीटों में से पिछोर विधानसभा क्षेत्र से बहुत जागरूक माना जाता है। इस विधानसभा क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत अधिक रहता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में जिले में जहां मतदान का प्रतिशत 75 था वहीं पिछोर में 84 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। 2023 के चुनाव में जिले में मतदान का प्रतिशत 79 है। वहीं पिछोर में 85 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इससे समझा जा सकता है कि इस क्षेत्र के मतदाता कितने जागरूक है। 2023 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी प्रीतम लोधी और कांग्रेस के उम्मीदवार अरविंद  लोधी के बीच मुख्य संघर्ष है। प्रीतम लोधी 2013 से लगातार भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। 2018 में वह काफी मजबूती से कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह से चुनाव लड़े थे और काफी नजदीकी अंतर से वह पराजित हुए थे। इस कारण इस चुनाव में वह आत्म विश्वास से भरे हुए नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनके प्रति इलाके में सहानुभूति की लहर है। जिसका फायदा उन्हें मिलेगा तथा उनकी जीत सुनिश्चित होगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी यहां आकर कह चुके हैं कि यदि इलाके में जनता ने प्रीतम लोधी को जिताया तो वे पिछोर को जिला बना देंगे। इस प्रभाव को भी भाजपा अपने पक्ष में मान रही है। जबकि भाजपा की तुलना में कांग्रेस ने अरविन्द लोधी को टिकिट दिया है। कांग्रेस ने पहले यहां से शैलेन्द्र सिंह को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन जब यह लगा कि जातिगत समीकरण में उनकी उम्मीदवारी फिट नहीं बैठेगी तो कांग्रेस ने अरविन्द लोधी को इस आशा से टिकिट दिया ताकि पिछोर और शिवपुरी में लोधी मतदाताओं को अपने पक्ष में किया जा सके। अरविन्द लोधी की प्रीतम लोधी से तुलनात्मक रूप से छवि अच्छी है। कांग्रेस को भरोसा है कि वह भले ही लोधी मतदाताओं का बड़ा समर्थन अपने पक्ष में न कर पाएं लेकिन अन्य जाति के मतदाता उन्हें वोट देंगे। कांग्रेस ने केपी सिंह को टिकिट न देकर एन्टी इनकंबेंसी फैक्टर को भी समाप्त करने की कोशिश की है। अरविंद लोधी के पक्ष में केपी ङ्क्षसह ने भी पिछोर और खनियाधाना में आमसभाऐं संबोधित की है। शिवपुरी में व्यस्त होने के बावजूद भी पिछोर में उनकी नजर बराबर बनी रही। जहां तक जातिगत समीकरण का सवाल है पिछोर में 50 हजार लोधी मतदाता है। लोधी मतदाताओं के बाद आदिवासियों की संख्या 55 हजार है। यादव 22 हजार, जाटव 15 हजार ब्राह्मण और वैश्य मतदाता 10-10 हजार और 5 हजार ठाकुर मतदाता है। कांग्रेस भाजपा दोनों दलों ने आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चुनाव में भाजपा ने खूब पसीना बहाया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की सभाओं में खूब भीड़ उमड़ी,  जबकि कांग्रेस का प्रचार अभियान बहुत सीमित रहा। परन्तु कांग्रेस प्रत्याशी अरविंद लोधी को अपनी साफ स्वच्छ छवि और फ्रेश कैंडिडेट होने का फायदा मिलने की उम्मीद है। इलाके के लोगों का कहना है कि इस विधानसभा क्षेत्र में इस बार जीत का आंकड़ा 10 हजार से कम होगा। कांग्रेस और भाजपा में से कोई भी दल का प्रत्याशी  चुनाव जीत सकता है। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस लगातार सात बार जीत का रिकॉर्ड बनाएगी या फिर भाजपा पिछोर में एक नए इतिहास का सृजन करेगी।  

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