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मंत्री सुरेश राठखेड़ा की सुनिश्चित हार को लाड़ली बहिना योजना भी जीत में नहीं बदल पाई

  मंत्री सुरेश राठखेड़ा की सुनिश्चित हार को लाड़ली बहिना योजना भी जीत में नहीं बदल पाई -पोहरी में पहली बार गैर ब्राह्मण, गैर किरार विधायक पह...

 मंत्री सुरेश राठखेड़ा की सुनिश्चित हार को लाड़ली बहिना योजना भी जीत में नहीं बदल पाई


-पोहरी में पहली बार गैर ब्राह्मण, गैर किरार विधायक पहली बार बना
शिवपुरी। भाजपा की लहर में भी पोहरी विधानसभा क्षेत्र में पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। इस विधानसभा क्षेत्र से भाजपा का कोई साधारण प्रत्याशी पराजित नहीं हुआ बल्कि लोकनिर्माण राज्य मंत्री सुरेश राठखेड़ा को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस जीत के साथ ही कांग्रेस के विजयी प्रत्याशी कैलाश कुशवाह ने कई रिकॉर्ड भी बनाए। एक तो उन्होंने प्रदेश सरकार के मंत्री को हराया। दूसरा रिकॉर्ड यह बना कि इस विधानसभा क्षेत्र से अभी तक किरार या ब्राह्मण प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं, लेकिन पहली बार किसी गैर ब्राह्मण और गैर किरार प्रत्याशी ने जीत का परचम फहराया है। दूसरा रिकॉर्ड यह बना कि विजयी प्रत्याशी कैलाश कुशवाह इस विधानसभा क्षेत्र के अभी तक हुए चुनावों में सर्वाधिक मतों से विजयी हुए हैं। तीसरा रिकॉर्ड यह बना कि इस विधानसभा क्षेत्र में यदि कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवार किरार जाति के होते तो भी विजय किरार प्रत्याशी को मिलती थी लेकिन 2023 के चुनाव में भाजपा ने किरार प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारा बसपा ने भी किरार उम्मीदवार को टिकिट दिया, लेकिन जीत मिली कांग्रेस के कुशवाह जाति के उम्मीदवार कैलाश कुशवाह को।
शिवपुरी जिले की पांच सीटों में चार सीटों पर भाजपा को जीत हांसिल हुई। लेकिन पोहरी में उसे तगड़ी हार का सामना करना पड़ा। प्रदेश की तरह जिले में भी लाड़ली बहिना योजना का असर था। लेकिन पोहरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के विधायक और प्रदेश सरकार के मंत्री सुरेश राठखेड़ा के प्रति जनता में इतना आक्रोश था कि लाड़ली बहिना योजना के लाभ को मतदाता भूल गए। चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं ने मुखर होकर सुरेश राठखेड़ा को टिकिट दिया। फिर सवाल यह है कि भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार क्यों बनाया। भाजपा ने टिकिट देने के लिए अनेक सर्वे कराए थे और हर सर्वे में सुरेश राठखेड़ा की  हार सुनिश्चित बताई जा रही थी। उनके परिजनों के आतंक और भ्रष्टाचार के किस्से पूरे क्षेत्र में प्रचलित थे। दोष सुरेश राठखेड़ा का यह था कि उन्होंने अपने खिलाफ प्रचार की रोक थाम के लिए कोई प्रयास नहीं किए और अपनी छवि को सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया। वह निश्चिंत थे कि भाजपा उन्हें टिकिट सुनिश्चित रूप से देगी और क्षेत्र में जो जातिगत समीकरण है उससे उनकी जीत में कोई रूकावट नहीं आएगी। आखिर खुद को टिकिट मिलने के प्रति सुरेश राठखेड़ा क्यों निश्चिंत थे? इसका प्रमुख कारण यह है कि सुरेश राठखेड़ा सिंधिया समर्थक हैं और वह केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से भाजपा में आए हैं। 2018 में वह कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में वह पोहरी से चुनाव लड़े थे। उस चुनाव में उन्होंने बसपा के उम्मीदवार कैलाश कुशवाह को लगभग 8 हजार मतों से पराजित किया था जबकि भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ था उनमें तथा विजेता उम्मीदवार के बीच मतों का अंतर लगभग 23 हजार था। 2020 में सुरेश राठखेड़ा सिंधिया के साथ भाजपा में आए। उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा देकर पुन: भाजपा टिकिट पर चुनाव लड़ा और वह लगभग 22 हजार मतों से उप चुनाव में विजयी हुए। जीत के इतने भारी अंतर से वह बेफिक्र थे कि उनका टिकिट कटेगा नहीं और काटने का निर्णय लिया तो सिंधिया उनकी पैरवी करेंगे। हुआ भी यही भाजपा ने सर्वे रिपोर्ट सामने रखकर सुरेश राठखेड़ा का टिकिट काटने का फैंसला लिया और यह माना जा रहा था कि भाजपा पूर्व विधायक प्रहलाद भारती को उम्मीदवार बनाएगी। परन्तु सिंधिया राठखेड़ा के लिए अड़ गए। जबकि राठखेड़ा की हार प्रारंभ से ही निश्चित मानी जा रही थी। सिंधिया के दवाब में भाजपा ने उन्हें टिकिट दे दिया। राठखेड़ा के प्रचार में सिंधिया ने जमकर मेहनत की। चुनाव के दौरान वह तीन बार पोहरी विधानसभा क्षेत्र में आए और उन्होंने जन सभाओं को संबोधित किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी क्षेत्र में दो सभाऐं हुई। पोहरी में किरार मतदाताओं की संख्या लगभग 50 हजार है और इन मतों पर शिवराज सिंह चौहान का जबर्दस्त प्रभाव माना जाता है, परन्तु परिणाम जब आया तो स्पष्ट हो गया कि किरार मतदाताओं ने मुख्यमंत्री को भी निराश किया। श्री राठखेड़ा के विरोध में कांग्रेस के बागी उम्मीदवार प्रद्युम्न वर्मा (किरार)मैैदान में आ गए। श्री वर्मा जनपद पंचायत पोहरी के अध्यक्ष रह चुके हैं और इलाके में उनका अच्छा प्रभाव है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा में श्री राठखेड़ा के विरोधियों ने उन्हें चुनाव में खड़ा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ताकि किरार मतों का बटवारा हो सके। हुआ भी यही कि अधिकांश किरार मतों को बसपा प्रत्याशी प्रद्युम्न वर्मा बटोरने में सफल रहे। हालांकि सुरेश राठखेड़ा ने जातिगत मतों का बटवारा न हो इसके लिए भरसक प्रयास किया। गांव-गांव जाकर वह सजातीय मतदाताओं के बीच प्रचार करते देखे गए कि यदि प्रद्युम्न वर्मा जीत भी गए तो विधानसभा में वह अकेले बैंठेगे और उन्हें कौन पूछेगा। मुझ से शिकायत है तो चुनाव के बाद जो दण्ड देना चाहें तो मुझे दे देना, लेकिन अभी तो मेरी इज्जत रख लो। यदि प्रद्युम्न वर्मा को तुमने वोट दिया तो कैलाश कुशवाह जीत सकता है। फिर तुम्हें कौन पूछेगा। उन्होंने सजातीय मतदाताओं से यह भी भावुक अपील की कि तुम विधायक बनाना चाहते हो या मंत्री बनाना चाहते हो लेकिन उनके गिड़गिड़ाने का भी मतदाताओं पर कोई असर नहीं हुआ। चुनाव के दौैरान हमेशा यही लगता रहा कि सुरेश राठखेड़ा दूसरे और तीसरे नम्बर की लड़ाई लड़ रहे हैं। जीत तो उनसे काफी दूर है। यदि वह प्रद्युम्न वर्मा को पराजित कर दूसरे स्थान पर आ जाऐं तो इससे ही उनकी इज्जत काफी हद तक बच जाएगी। इसी इज्जत को बचाने के चक्कर में वह लगातार लगे रहे। शायद इसी कारण पोहरी विधानसभा क्षेत्र में अंतिम दौर में जमकर पैसा बांटा गया। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी कैलाश कुशवाह तीसरी बार पोहरी से चुनाव लड़ रहे थे। पहले दो चुनाव उन्होंने बसपा प्रत्याशी के रूप में लड़े थे और उन्होंने दोनों चुनावों में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। पहले चुनाव में उन्होंने भाजपा को तीसरे स्थान पर ढकेला था और दूसरे स्थान पर कांग्रेस को तीसरे स्थान पर खड़ा कर दिया था। इस कारण क्षेत्र में उनके प्रति सहानुभूति का वातावरण था। किरार मतों का बटवारा हो गया था और गैर किरार मतदाता किरार विधायक से मुक्ति के लिए कैलाश कुशवाह के पक्ष में अधिशंख्यक रूप से खड़े हो गए। आदिवासी मतों का झुकाव भी कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में हुआ। इसकी परिणति यह हुई कि कांग्रेस उम्मीदवार कैलाश कुशवाह लगभग 50 हजार मतों से चुनाव जीते अभी तक पोहरी में कोई भी विजयी उम्मीदवार 25 हजार से अधिक मतों से चुनाव नहीं जीता। पोहरी में या तो किरार या ब्राह्मण विधायक बनता रहा है। पहली बार इस इतिहास को कैलाश कुशवाह ने+ बदलने में सफलता प्राप्त की। भाजपा की लहर में भी उनकी जीत ने यह संदेश दिया कि गलत प्रत्याशी का चयन किसी पार्टी के लिए कितना आत्मघाती निर्णय हो सकता है।


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