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गुरुद्वारा इंटरमीडिएट कॉलेज में वीर बाल दिवस मनाया गया

  गुरुद्वारा इंटरमीडिएट कॉलेज में वीर बाल दिवस मनाया गया रिपोर्टिंग कामेश्वर विश्वकर्मा चोपन सोनभद्र/ बुधवार को गुरुद्वारा इंटरमीडिएट कॉलेज ...

 गुरुद्वारा इंटरमीडिएट कॉलेज में वीर बाल दिवस मनाया गया

रिपोर्टिंग कामेश्वर विश्वकर्मा






चोपन सोनभद्र/ बुधवार को गुरुद्वारा इंटरमीडिएट कॉलेज चोपन में सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के शहीद हुए चार पुत्रों के रूप में विद्यालय परिसर में वीर बाल दिवस के रूप में मनाया गया इस अवसर पर विद्यालय के प्रबंधक सरदार सतनाम सिंह द्वारा बच्चों को संबोधन करते हुए कहा कि वीर बाल दिवस खालसा के चार साहिबजादों के बलिदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है. अंतिम सिख गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बच्चों ने अपने आस्था की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. यह उनकी कहानियों को याद करने का भी दिन और यह जानने का भी दिन है कि कैसे उनकी निर्मम हत्या की गई- खासकर जोरावर और फतेह सिंह की. सरसा नदी के तट पर एक लड़ाई के दौरान दोनों साहिबजादे को मुगल सेना ने बंदी बना लिया था. इस्लाम धर्म कबूल नहीं करने पर उन्हें क्रमशः 8 और 5 साल की उम्र में कथित तौर पर जिंदा दफन कर दिया गया था.  वक्ताओं के क्रम में पूर्व प्रबंधक सरदार सिरमौर सिंह ने बताया कि वर्ष 1704 का दिसंबर महीना था। मुगल सेना ने 20 दिसंबर को कड़कड़ाती ठंड में अचानक आनंदपुर साहिब किले पर धावा बोल दिया। गुरु गोबिंद सिंह उसे सबक सिखाना चाहते थे, लेकिन उनके दल में शामिल सिखों ने खतरे को भांपकर वहां से निकलने में ही भलाई समझी। गुरु गोबिंद सिंह भी जत्थे की बात मानकर पूरे परिवार के साथ आनंदपुर किला छोड़कर चल पड़े। सरसा नदी में पानी का बहाव बहुत तेज था। इस कारण नदी पार करते वक्त गुरु गोबिंद सिंह का परिवार बिछड़ गया।

गुरु गोबिंद के साथ दो बड़े साहिबजादों- बाबा अजित सिंह और बाबा जुझार सिंह के साथ चमकौर पहुंच गए। वहीं, उनकी माता गुजरी, दोनों छोटे पोतों- बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के साथ रह गईं। उनके साथ गुरु साहिब का सेवक रहा गंगू भी था। वो माता गुजरी को उनके दोनों पोतों समेत अपने घर ले आया। कहा जाता है कि माता गुजरी के पास सोने के सिक्कों को देखकर गंगू लालच में आ गया और उसने इनाम पाने की चाहत में कोतवाल को माता गुजरी की सूचना दे दी।

माता गुजरी अपने दोनों छोटे पोतों के साथ गिरफ्तार हो गईं। उन्हें सरहंद के नवाब वजीर खान के सामने पेश किया गया। वजीर ने बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को इस्लाम स्वीकारने को कहा। दोनों ने धर्म बदलने से इनकार कर दिया तो नवाब ने 26 दिसंबर, 1704 को दोनों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया। वहीं, माता गुजरी को सरहिंद के किले से धक्का देकर मार दिया। इस अवसर पर अध्यक्ष सरदार सुलखान सिंह, सरदार त्रिलोचन सिंह प्रधानाचार्य धीरेंद्र प्रताप सिंह एवं विद्यालय के पदाधिकारी, कार्य समिति सदस्य, एवं विद्यालय के बच्चों सहित सभी अध्यापक मौजूद रहे।।

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