० मनुस्मृति से नफरत पर शरीयत से मोहब्बत के सियासी निहितार्थ…! (डॉ अजय खेमरिया) -प्रसंगवश- शिवपुरी / राहुल गांधी और उनका परिवार प्रधानमंत्र...
० मनुस्मृति से नफरत पर शरीयत से मोहब्बत के सियासी निहितार्थ…!
(डॉ अजय खेमरिया)
-प्रसंगवश-
शिवपुरी / राहुल गांधी और उनका परिवार प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध नफरत की रतौन्धी में देश और हिन्दू समाज के विरुद्ध खड़ा हो गया है।कल संसद में प्रियंका गांधी ने संभल हिंसा पर भाषण देकर मुस्लिम तुष्टिकरण की सभी सीमाएं पार कर दी थी आज राहुल गांधी ने संविधान के बहाने फिर हिन्दू समाज को अपमानित करने का काम किया है।निशाना अल्पसंख्यक वोटरों को खुश करना भर है। संसद में बहस का मुद्दा संविधान के 75 साल था लेकिन राहुल गांधी इसमें मनुस्मृति को ले आये। बेशक मनुस्मृति हिन्दू समाज में कभी किसी दौर में किसी स्तर पर अनुशरण का विषय नही रहा है।किसी भी हिन्दू के घर में मनुस्मृति शायद ही पूजा स्थल में कभी रही हो।देश दुनिया में मौजूद किसी भी हिन्दू की पूजा पद्वति में एक अंश भी मनुस्मृति से सम्बद्ध नही रहता है।यह महज वर्तमान की बात नही सदियों का इतिहास भी है।
राहुल गांधी और उनके पुरखो ने कभी मनुस्मृति की किताब को आज से पहले हाथ मे भी नही लिया होगा।जाहिर है राहुल गांधी मुस्लिम वोटरों को खुश करने के लिए हिंदुओं को टारगेट कर रहे हैं।संविधान से देश तो 1950 के बाद से चल रहा है लेकिन भारत की सनातन सभ्यता तो हमेशा से समरसता की हामी रही है। कभी शरीयत जैसे निकृष्ट कानून भारतीय समाज में नही रहे हैं।कोई एक प्रमाणिक उदाहरण बताए जब किसी दलित के कान में शीशा डाला गया हो?कब नीति की बात पर किसी की जीभ काटी गई हो?कब चोरी पर किसी के हाथ काट डाले गए हो?कब किसी का सरेराह अंग भंग किया जाता हो?
इस देश में आज के ओबीसी,दलित, आदिवासी इतिहास में बड़े बड़े साम्राज्य के मालिक रहे हैं।
आज भी एक ओबीसी देश का प्रधानमंत्री हैं। आदिवासी महिला हमारी राष्ट्राध्यक्ष हैं।मप्र का चीफ जस्टिस दलित है।पिछला राष्ट्रपति भी दलित थे।सबसे ज्यादा ओबीसी मंत्री आज की केंद्र सरकार में हैं। दलित,ओबीसी, जनजाति मुख्यमंत्री, मंत्री,विधायक,सांसद भी इसी लोकतंत्र में आज काम कर रहे हैं।
स्पष्ट है कि राहुल गांधी और उनका लेफ्ट इकोसिस्टम भारत के विरुद्ध एक क्षद्म युद्ध छेड़ने पर उतारू हैं।
यह युद्व परोक्ष रूप से हिंदुओं के विरुद्ध है।मुसलमान वोटरों में अपनी जमीन बनाने के लिए गांधी परिवार खुल्लम खुल्ला मुस्लिम लीग की राह पर चल निकला है।वरन क्या तुक थी कि आज संविधान के साथ मनुस्मृति को पेश करने की?सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी किसी अन्य धर्म से कथित तौर पर जुड़ी किताबों को यूं सार्वजनिक रूप से संसद में लहराने की हिम्मत कर सकते हैं?
निसंदेह राहुल ही क्या समूचे विपक्ष में यह हिम्मत नही है कि शरीयत या हदीस की परम्पराओं पर एक शब्द बोलने की हिम्मत दिखाए।सच्चाई यह है कि राहुल और उनके सलाहकार हिंदुओं को अपमानित कर मुसलमान वोटरों को हर कीमत पर खुश करना चाहते हैं।इसके लिए वह मनुस्मृति को अनावश्यक रूप से हिंदुओं के साथ जोड़कर दुनिया में बदनाम कर रहे हैं। सवाल यह भी है कि हलाला,तीन तलाक जैसे विषयों पर शरीयत के साथ खड़े होने वाले राहुल किस मुह से मनुस्मृति का काल्पनिक भय दिखाना चाह रहे हैं?बात तो यह भी है कि बगैर पढ़े ही मनुस्मृति राहुल के सपनों में ही नही मनोविज्ञान में भी समाई है।उनके परिवार के सामंतवाद में घुली है इसीलिए वे एक ओबीसी प्रधानमंत्री को स्वीकार नही कर पा रहे हैं।उनकी आंखें विश्वास नही कर पा रहीं है कि भारत में कोई आदिवासी राष्ट्रपति है।
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